कछुआ और खरगोश की कहानी

एक बार की बात है, एक कछुआ (turtle) और एक खरगोश (rabbit) एक जंगल में रहते थे। ये दोनों एक-दूसरे के साथ दोस्ती कर चुके थे। खरगोश बहुत तेज दौड़ने वाला जानवर था जबकि कछुआ धीमे गति से चलता था। दिन-रात, खरगोश अपनी तेजी दिखाता और कछुए को आकर्षित करता।

एक दिन, कछुआ खरगोश के पास आया और कहा, "मेरे दोस्त, तुम बहुत तेज़ दौड़ते हो। मुझे एक दौड़ में तुमसे प्रतियोगिता करनी है।"

खरगोश मुस्काते हुए बोला, "अच्छा, चलो फिर आज हम एक दौड़ में मुकाबला करेंगे। मैं तुमसे बेहतर तेजी से दौड़ता हूँ।"

दौड़ का दिन आया और खरगोश और कछुआ दौड़ लगाने के लिए तैयार हुए। खरगोश तेज दौड़ने लगा और जल्दी ही अग्रणी हो गया। वह सोचने लगा, "मैं जीत जाऊंगा। कछुआ तो मुझसे बहुत ही धीमे गति से दौड़ता है।"

जब खरगोश अपने पड़ोस में ढेर सारी दूरी तय कर ली, तो वह देखा कि कछुआ भी दौड़ता हुआ आ रहा है। वह हैरान हो गया कि कछुआ उसे कैसे पीछे छोड़ रहा है।

धीमे धीमे चलते हुए कछुआ खरगोश के पास पहुँचा और बोला, "दोस्त, तुम तो बहुत तेज दौड़ते हो। लेकिन मैं तुमसे कुछ सीखा हूँ।"

खरगोश गर्व से उठकर बोला, "क्या सीखा है तुमने?"

कछुआ मुस्कराते हुए बोला, "मैंने यह सीखा है कि धीरे धीरे और स्थिरता से चलते हुए भी हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।"

इस कहानी से हमें यह सिखाई जाती है कि जीवन में धीमेपन और स्थिरता महत्वपूर्ण होती हैं। जब हम बिना तेजी के और समय लगाकर काम करते हैं, तो हम अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त कर सकते हैं। खरगोश को अपनी तेजी पर गर्व था, लेकिन कछुए ने उसे यह दिखाया कि धीमापन और स्थिरता सचमुच अपार शक्ति होती है।

इसलिए, हमें खुद को हमेशा मेहनत और समर्पण के साथ काम करने की आवश्यकता होती है और धीरे धीरे प्रगति करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का निश्चय करना चाहिए। तब हम सफलता के पथ पर अपनी प्रतिस्पर्धा को पीछे छोड़ सकते हैं और जीवन के रोमांचक किस्से लिख सकते हैं।

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